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रविवार, 4 जून 2017

अनमोल विचार

सद्विचार 
मानव केवल अपने विचारों एवं विवेक के कारण ही पशुता के स्तर से ऊपर उठकर मानव बनता है । जिसमें विचारों की समृद्धि नहीं है , उसके आर्थिक समृद्धि का क्या प्रयोजन ?
विद्या, तप, आचरण, दान, दया, धर्म, त्याग, सरलता एवं समत्व जैसे सद्गुणों के अभाव में नहीं हम अपना उद्धार कर सकते हैं, नहीं अपने सनातन संस्कृति के विकास में सहायक बन सकते हैं। भेद -भाव रुपी वायु द्वारा अग्नि को प्रचंड बना देने वाले लोग संस्कृति की रक्षा के नाम पर इसका अहित कर रहे हैं । उत्साह के साथ विवेक परमावश्यक है । हनुमान जी को सजा देते वक्त दंडाधिकारियों को इतना विवेक न था कि इससे उनकी सोने की लंका जल सकती थी । तथाकथित सीमा के नाम पर मानवों के बीच दरार उत्पन्न करनेवाले समाज एवं राष्ट्र के विचार करनेवाले पथ-प्रदर्शकों जरा आत्मविश्लेषण कर लो । कुछ भी विचार करते वक्त हमारे संस्कृति की गौरवमयी गाथा को जरूर याद रखना । अग्नि को शांत करने के लिए जल के स्थान पर घृत डालने वालों से हमारे सनातन- संस्कृति की कितनी रझा हो सकती है, विचार करने की बात है । 
प्रत्येक सद्शास्त्रों तथा सत्पुरुषों ने सद्विचारों तथा सदुपदेशों के द्वारा ही संस्कृति का उन्नयन किया है लेकिन अविवेकी जन सदुपयोग के बदले इसका दुरुपयोग ही करेंगे । मूर्ख उपदेश कहाँ सुनते हैं ? साँप को दूध पिलाने से उसका विष बढ़ता ही है ।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'