स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्।।१।१९।।
स: = वह(उस) ; घोष: = शब्द ; धार्तराष्ट्राणां = धृतराष्ट्र के पुत्रों के ; हृदयानि = हृदय को ; व्यदारयत् = विदीर्ण कर दिया ; ( नभश्च = नमः + च ) ; नभ: = आकाश ; पृथिवीं = धरती ; (चैव = च + एव ) ; च = और ; एव = निश्चय ही ; तुमुल: = कोलाहलपूर्ण ; अभ्यनुनादयन् = प्रति ध्वनित करता हुआ।
उन सभी की ध्वनि मिलकर कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश और धरती को प्रतिध्वनित करते हुए धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय को विदीर्ण कर दिया, अर्थात् उनमें भय उत्पन्न कर दिया।।१।१९।।
तुमुल वाद्य वो शंखध्वनि से, धरा गगन बीच शोर हुआ।
फट गई छाती धार्तराष्ट्र के, भय अमिट कमजोर हुआ।।१।१९।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्।।१।१९।।
स: = वह(उस) ; घोष: = शब्द ; धार्तराष्ट्राणां = धृतराष्ट्र के पुत्रों के ; हृदयानि = हृदय को ; व्यदारयत् = विदीर्ण कर दिया ; ( नभश्च = नमः + च ) ; नभ: = आकाश ; पृथिवीं = धरती ; (चैव = च + एव ) ; च = और ; एव = निश्चय ही ; तुमुल: = कोलाहलपूर्ण ; अभ्यनुनादयन् = प्रति ध्वनित करता हुआ।
उन सभी की ध्वनि मिलकर कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश और धरती को प्रतिध्वनित करते हुए धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय को विदीर्ण कर दिया, अर्थात् उनमें भय उत्पन्न कर दिया।।१।१९।।
तुमुल वाद्य वो शंखध्वनि से, धरा गगन बीच शोर हुआ।
फट गई छाती धार्तराष्ट्र के, भय अमिट कमजोर हुआ।।१।१९।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'
हरि ॐ तत्सत्।
जवाब देंहटाएंअध्ययन की सुगमता हेतु यह सरल और सहज क्रमिक रूप से उपलब्ध रहेगा। स्वरचित हिन्दी पद्यानुवाद मूल श्लोकों के भाव को याद रखने में पाठकों के लिए श्रेष्ठ-सेव्य है।
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