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बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

श्रीदुर्गा सप्तशती और उसके सम्पुट-पाठ से कामना-सिद्धि

 श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ कामना- सिद्धि के लिए किया जाता है । श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं।इससे बड़ा तंत्र, मंत्र और यंंत्र इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं है।श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। इस ग्रंथ मे ऐसी शक्ति है जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है,रोग दूर होते है,भय नही होता है,सफलता मिलती है, सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्तोत्र एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

श्रीमार्कण्डेयपुराणान्तर्गत देवीमाहात्म्यमें ' श्लोक ' , ' अर्धश्लोक ' और ' उवाच ' आदि को मिलाकर कुल 700 मन्त्र हैं । यह माहात्म्य दुर्गासप्तशती के नामसे प्रसिद्ध है । सप्तशती  अर्थ , धर्म , काम , मोक्ष - चारों पुरुषार्थोंको प्रदान करनेवाली है । समस्त कामनाओं को पूरी करने वाला है। जो पुरुष जिस भाव और जिस कामनासे श्रद्धा एवं विधिके साथ सप्तशतीका पारायण करता है , उसे उसी भावना और कामनाके अनुसार निश्चय ही फल - सिद्धि होती है । इस बातका अनुभव अगणित पुरुषोंको प्रत्यक्ष हो चुका है । यहाँ हम कुछ ऐसे चुने हुए मन्त्रों का उल्लेख करते हैं , जिनका सम्पुट देकर विधिवत् पारायण करने से विभिन्न पुरुषार्थों की व्यक्तिगत और सामूहिक रूपसे सिद्धि होती है । इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मन्त्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं ।लेकिन अगर आप भक्तिभाव तथा नि:श्वार्थ भाव से देवी के मंत्रों की आराधना करते है तो आपको मन चाहा फल की प्राप्ति होती है।

1.सामूहिक कल्याण के लिए:-

"देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या । तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, 

भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा न:।।

2.विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिए:-

"यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ,

ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च ।

 सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय, 

 नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥

३.विश्व की रक्षा के लिए:-

या श्री : स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी :,

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा , 

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥

4.विश्व के अभ्युदय के लिए:-

 विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं , 

विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्  

विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति ।

 विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥ 

5.विश्वव्यापी विपत्तियोंके नाश के लिए:-

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद, 

मातर्जगतोऽखिलस्य । 

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं ,

त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥

6.विश्वके पाप - ताप - निवारण के लिए:-

देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते- नित्यं,

यथासुरवधादधुनैव सद्यः । 

पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु,

उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥

7.विपत्ति - नाश के लिए:-

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।

 सर्वस्यातिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

8.विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिए:-

करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी,

 शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।

9.भय - नाश के लिए:-

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । 

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।।

अथवा

एत्तते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् । 

पात नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥

अथवा

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् । 

त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥ 

10.पाप - नाश के लिए:-

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् । 

सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन : सुतानिव ॥ 

11.रोग - नाश के लिए:-

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा ,

रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।

 त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां,

 त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥

12.महामारी - नाश के लिए:-

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥

13:-आरोग्य और सौभाग्यकी प्राप्ति के लिए:-

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् । 

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

14.सुलक्षणा पत्नी की प्राप्तिके लिए:- 

पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । 

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥

15.बाधा - शान्ति के लिए:-

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि । 

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥

16:-सर्वविधि अभ्युदय के लिए:-

ते सम्मता जनपदेष धनानि तेषां ,

तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः । 

धन्यास्त एव निभूतात्मजभृत्यदारा , 

येषां सदाभ्यदयदा भवती प्रसन्ना ।।

17.दारिद्यदुःखादिनाश के लिए:-

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः ,

स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । 

दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या , 

सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥

18.रक्षा पाने के लिए:-

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके । 

घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानि : स्वनेन च ॥ 

19:-समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिए:-

"विद्या : समस्तास्तव देवि भेदाः ,

स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्स । 

त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्,

 का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ॥

20:- सब प्रकार के कल्याण के लिए:-

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

21.शक्ति - प्राप्ति के लिए:-

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि । 

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

22. प्रसन्नताकी प्राप्ति के लिए:- 

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वातिहारिणि । 

त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥

23 . विविध उपद्रवोंसे बचने के लिए:-

रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा 

यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।

 दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये 

तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥

24. बाधामुक्त होकर धन - पुत्रादिकी प्राप्तिके लिए:-

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः ।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॥

25. भक्ति - मुक्तिकी प्राप्ति के लिए:-

" विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् । 

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

26. पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिए:-

"नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे ।

 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ 

27 . स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्ति के लिए:-

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी । 

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥

28. स्वर्ग और मुक्ति प्राप्ति के लिए:-

" सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य . हृदि संस्थिते । 

स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

29. मोक्षकी प्राप्ति के लिए:-

" त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या ,

विश्वस्य बीजं परमासि माया । 

सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्

त्व वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः

30. स्वप्नमें सिद्धि - असिद्धि जानने के लिए:-

" दुर्गे देवि नमस्तभ्यं सर्वकामार्थसाधिके ।

मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय ।।

हरि ॐ तत्सत्।

श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'






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