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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 010-01-010(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

अपर्याप्तं तदस्माकं बलंभीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।१।१०।।
अपर्याप्तं = अपरिमेय ; ( तदस्माकं = तत् + अस्माकं ) ; तत् = वह ; अस्माकं = हमारी, हमलोगों की ; बलं = बल, सेना ; भीष्माभिरक्षितम् ( भीष्म + अभिरक्षितम् ) पितामह भीष्म द्वारा संरक्षित ; पर्याप्तं = सीमित ; ( त्विदमेतेषां = तु + इदम् + एतेषाम् ) ; तु = लेकिन ; इदम् =यह ; एतेषाम् = इनके ( पाण्डवों के) ; भीमाभिरक्षितम् ( भीम + अभिरक्षितम् ) भीम द्वारा संरक्षित।
हमारी सेना पितामह भीष्म द्वारा संरक्षित होकर अजेय अपरिमेय हैं लेकिन भीम द्वारा संरक्षित पाण्डवों की सेना सीमित है जो आसानी से जीता जा सकता है।
पितामहरक्षित कौरव बल है, अपनी सेना अजेय है।
भीमरक्षित पाण्डु -दल हैं, सीमित सुगम वो जेय है।।१।१०।।

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 009-01-009(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)


अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता: ।
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा: ।।१।९।।
अन्ये = अन्य; च और; बहव: = बहुत से; शूरा: = शूरवीर; मदर्थें = मेरे लिये; त्यक्तजीविता: = जीवन की आशा को त्यागने वाले; नानाशस्त्रप्रहरणा: = अनेक प्रकार के शस्त्र अस्त्रों से युक्त; सर्वें = सब के सब; युद्वविशारदा: = युद्ध में चतुर हैं।
और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित और सभी युद्ध में चतुर हैं ।।१।९।।
मरने को तैयार रण में मेरे हित सब वीर हैं।
आयुधों से युक्त भी हैं, समर चतुर रणधीर हैं।।।।१।९।।
हरि ॐ तत्सत्।
श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 008-01-008(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)


भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।१।।८।।
भवान् = आप ; (भीष्मश्च = भीष्म: + च ) ; भीष्म: = भीष्म पितामह ; ( कर्णश्च = कर्ण: + च ) ; कर्ण: = कर्ण ; ( कृपश्च = कृप: + च ) ; कृप: = कृपाचार्य ; समितिञ्जयः = सदा संग्राम में विजयी ; = अश्वत्थामा ; (द्रोणाचार्य का पुत्र ) ; ( विकर्णश्च = विकर्ण: + च ) ; विकर्ण: = विकर्ण ; ( सौमदत्तिस्तथैव‌ = सोमदत्ति: + तथा + एव ) ; सौमदत्ति: = सोमदत्त का पुत्र ; एव = निश्चय ही।
मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म पितामह, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा हैं - जो सभी सदा संग्राम विजयी रहे हैं।
मेरे दल में आप भी हैं,भीष्म कृपा और कर्ण हैं।
संग्राम भूमि में सदा विजयी, अश्वत्थ भूरि विकर्ण हैं।।१।८।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 007-01-007(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)


अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।१।७।।
अस्माकं = हमलोगों के, हमारे ; तु = लेकिन ; विशिष्टा : = विशेष शक्तिशाली ; ये = जो ;( तान्निबोध = तान् + निबोध ) ; तान् = उन्हें ; निबोध = समझ लीजिए ; ( द्विजोत्तम = द्विज +उत्तम ) ; द्विज = हे ब्रह्मण ; उत्तम = श्रेष्ठ ; नायका = नायका : = सेनापति ; मम् = मेरे ; सैन्यस्य = सेना के ; संज्ञार्थं(संज्ञा+अर्थं) = जानकारी के लिए ; तान् = उन्हें ; ब्रवीमि = बताता हूं ; ते = आपको।
हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! लेकिन अब हमारे जो विशेष शक्तिशाली वीर योद्धा हैं, उन्हें आप समझ लीजिए। वे सभी हमारी सेना के संचालन करने में सक्षम हैं, उन्हें आपको जानकारी के लिए बताता हूं।
हे द्विजश्रेष्ठ ! अपने समर के विशिष्ट योद्धा जान लें।
सैन्य-संचालन निपुण हैं, कह रहा आप संज्ञान लें।‌‌।१।७।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 006-01-006(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

 
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।१।६।।
( युधामन्युश्च = युधामन्यु: + च ) ; युधामन्यु: = युधामन्यु ; च = और;विक्रांत = विक्रांत : = पराक्रमी ; ( उत्तमौजाश्च = उत्तमौजा: + च ) ; उत्तमौजा: = उत्तमौजा ; वीर्यवान् = अत्यंत शक्तिशाली ; सौभद्र: = सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु ; ( द्रौपदेयाश्च = द्रौपदेया: + च ) ; द्रोपदेया: = द्रौपदी के पुत्र ; सर्व = सभी ; महारथा: = महारथी।
अत्यंत पराक्रमी युधामन्यु , अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा के पुत्र तथा द्रौपदी के पुत्र - ये सभी महारथी हैं।
युधामन्यु पराक्रमी हैं, उत्तमौजा बलवीर हैं।
सुभद्रा और द्रौपदी के, सभी सुत रणवीर हैं।।१।६।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 005-01-005(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)


धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः।।१।५।।
(धृष्टकेतुश्चेकितान: = धृष्टकेतु: + चेकितान:) ; धष्टकेतु: = धृष्टकेतु ; चेकितान: = चेकितान;
(काशिराजश्च = काशिराज: +च) ; काशिराज: = काशिराज;च = और ;
वीर्यवान् = परम शक्तिशाली ( पुरुजित्कुन्तिभोजश्च = पुरुजित्+कुन्तिभोज: + च ) ; पुरुजित् = पुरुजित् ; कुन्तिभोज: = कुन्तिभोज ; च = और ; ( शैव्यश्च = शैव्य:+च ) ; शैव्य: = शैव्य ; ;च = और ; नरपुङ्व: = नरश्रेष्ठ( नरों में वीर)।
इनके साथ में धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज,पुरुजित् , कुन्तिभोज, शैव्य जैसे महान् शक्तिशाली वीर योद्धा भी हैं।
धृष्टकेतु चेकितान भी हैं, काशिराज जैसे वीर हैं।
पुरुजित् कुन्तिभोज भी हैं, शैव्य तुल्य नरवीर हैं।।१।५।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 004-01-004(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।१।४।।
अत्र = यहॉं ; शूरा: =वीर ; (महेष्वासा: = महा+इषु +आसा:) ; महा = महान् ; इषु = धनुष ; आसा: = धारण करने वाले ; महेष्वासा: = महान् धनुर्धर ; (भीमार्जुनसमा = भीम+अर्जुन+समा) ; समा: = के समान ; युधि = युद्ध में ; युयुधान: = युयुधान ; (विराटश्च = विराट: + च) ; विराट: = राजा विराट ; च = और ; ( द्रुपदश्च = द्रुपद: + च )द्रुपद: = राजा द्रुपद ; महारथ: = महान् योद्धा ।
यहॉं (पाण्डवों की सेना में) भीम और अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर और धनुर्धर हैं यथा- महान् योद्धा महारथी युयुधान, राजा विराट तथा राजा द्रुपद।
पाण्डु-दल में अनेक, अर्जुन भीम जैसे वीर हैं।
महारथी युयुधान राजा, द्रुपद विराट रणवीर हैं।।१।४।।
हरि ॐ तत्सत्।
-श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'