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शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 000-01-000(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

श्रीमद्भगवद्गीता
(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)
श्री तारकेश्वर झा ‘आचार्य’
ॐ परमात्मने नमः।
प्राक्कथन
भगवान जगदाधार श्री कृष्ण की उपदेशात्मक परम कल्याणकारी
अमृतवाणी भक्ति, मुक्ति और ज्ञान की त्रिवेणी है। मानव के कल्याण के निमित्त विश्व में श्रीमद्भगवद्गीता गीता अद्भुत, अलौकिक और अद्वितीय है। भगवान श्री हरि सबका कल्याण करें।
श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नम:।
श्री गणेशाय नमः।
श्री परमात्मने नमः।
श्री महाकाल्यै नमः।
श्री महालक्ष्म्यै नमः।
श्री महासरस्वत्यै नमः।
श्री गुरवे नमः।
प्रिय सात्मनों !
मुक्ति-पथ के पथिक ! आगे बढ़कर सारस्वत मुक्ति का आलिंगन कर मानव जीवन को सार्थक कर लो ! अगर शिथिल होकर आराम की चिंता में बैठ जाओगे तो बहुत बड़ा नुक़सान हो जाएगा। तेरे जन्म जन्मांतर के परिश्रम के फलस्वरूप प्राप्त मानव-जीवन को तू यूं ही बिता दोगे और पारलौकिक सुख से वंचित रहकर भव-बंधन में पड़े रहोगे। चौरासी लाख योनियों के परिभ्रमण के पश्चात् यह दुर्लभ मानव-जीवन प्राप्त हुआ है। सारी योनियों में केवल मनुष्य को ही यह अधिकार है कि वह आत्म-साक्षात्कार कर मुक्त हो सके। बंधन भला किसे अच्छा लगता है ? यह शरीर आपका स्थायी आवास नहीं है। मोह और अज्ञानता के कारण अपने आत्म-स्वरूप सारस्वत आत्मसत्ता को भूल चुके हैं। आप जबतक प्रपंचों से उठकर, षड्विकारों से अपने अपने मन और बुद्धि को परिशुद्ध नहीं कर लेते जबतक आत्मज्ञान और आत्म साक्षात्कार असंभव है। आत्मशुद्धि, पूजा-पाठ, जप-तप, ,योग, यज्ञ, ध्यान-चिंतन , सद् शास्त्रों तथा सत्पात्रों का आश्रय से आत्मविश्वास को जागृत कर आत्म-विकास करते हुए आप निश्चित रूप से दुर्लभ ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान स्वरूप के दर्शन आत्म साक्षात्कार द्वारा ही संभव है। सतत् प्रयास करते हुए आप अपनी जिज्ञासा को शांत कर महाबुद्ध और महावीर बन सकते हैं।
इस क्रम में श्रीमद्भागवत गीता एक अद्भुत ग्रंथ है। यह भगवान सर्वाधार परमेश्वर श्री कृष्ण की वाणी है जो मोक्षदायिनी है। इसके सरल शब्दों में भरे हुए रहस्य को समझते ही तत्क्षण ही व्यक्ति मुक्त हो जाता है। सदियों से यह अनमोल ग्रंथ मोक्ष-पिपासुओं के लिए मां गंगा के सदृश ही अपने ज्ञान-प्रवाह के साथ मोक्षदायिनी है। इसके अनंत सागर में गोते लगाने पर साधक अपने विकारों का त्याग कर निर्मल बन जाता है और आत्म-स्वरूप हो जाता है।
भगवद्भक्ति और भगवद् कृपा के बिना इस अद्भुत अलौकिक पारलौकिक भगवद्वाणी स्वरूप ग्रंथ को नहीं समझा जा सकता है भक्तिपूर्वक निरंतर प्रयास करते हुए अपने साधनों से समझने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। प्रयास सच्चा हो तो सर्व कृपालु श्री हरि विष्णु की अवश्य ही कृपा प्राप्त कर कृत्य -कृत्य हो जायेंगे।
अब विषय-विस्तार और शब्दों के भंवर जाल में न फंसकर सीधे परमेश्वर श्री हरि विष्णु श्री कृष्ण जी की वाणी को समझने का प्रयास करेंगे। वाणी संस्कृत में है, इसे अभ्यास करते हुए सरल शब्दों में अपनी भाषा में अठारह अध्यायों में सात सौ श्लोकों में कथित रहस्य को समझते हैं।युद्ध की विभीषिका से भयभीत और विचलित महावीर धनुर्धर अर्जुन जब इसके दुष्परिणामों को सोचकर आत्मीय जनों की विनाशलीला की आशंका से मोह ग्रस्त होकर अपने शस्त्रों का परित्याग कर युद्ध करने से इंकार कर देता है तो भगवान सर्वाधार परमेश्वर श्री कृष्ण उन्हें उचित आत्मज्ञान देकर आत्म साक्षात्कार के द्वारा मोहभंग करते हुए युद्ध करने को उद्धत करते हैं। इस परिदृश्य में कहीं गई भगवान की अनमोल आत्मज्ञान वाणी भक्त और साधन-प्रेमियों के लिए कल्पवृक्ष के सदृश है जो भक्ति, मुक्ति और विरक्ति की त्रिवेणी संगम है। यह ज्ञान गृहस्थ और संन्यास दोनों ही आश्रमों के लिए सम्यक् है। आइए सरल भाषा में इसे अभ्यास करते हैं और भाषा में पद्यरूप में भी सुशोभित करने की कोशिश करते हैं। श्री हरि ऐसा करने की हमें शक्ति, अनुमति और सामर्थ्य प्रदान करें।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

2 टिप्‍पणियां:

  1. अध्ययन की सुगमता हेतु यह सरल और सहज क्रमिक रूप से उपलब्ध रहेगा। स्वरचित हिन्दी पद्यानुवाद मूल श्लोकों के भाव को याद रखने में पाठकों के लिए श्रेष्ठ-सेव्य है।

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