Home, All Blogs, My Posts List, All label5

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 013-01-013(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।।१।१३।। 
तत: = उसके बाद ; ( शङखाश्च = शङखा: + च ) ; शङखा: = बहुत-से शंख ; ( भेर्यश्च = भेर्य: + च ) ; भेर्य : = बड़े-बड़े ढ़ोल, नगाड़े ; ( पणवानक = पणव + आनक ) ; पणव = ढ़ोल ; आनक = मृदंग ; गोमुख: = श्रृंगी ; ( सहसैवाभ्यहन्यन्त = सहसा + एव +अभ्यहन्यन्त ) ; सहसा = अचानक ; एव = निश्चय ही ; अभ्यहन्यन्त = एकसाथ बजाए गए ; स: = ( शब्दस्तुमुलोऽभवत् = शब्द: + तुमुल: + अभवत् ) ; शब्द: = समवेत स्वर ; तुमुल: = ; कोलाहलपूर्ण ; अभवत् = हुआ। 
उसके बाद अनेक शंख, बडे़-बड़े ढ़ोल- नगाड़े, बिगुल, तुरही और सींग अचानक ही एक साथ बज उठे। वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था। 
तभी शंख बिगुल मृदंग तुरही, नगाड़े श्रृंगी बज उठे। 
समवेत स्वर से गुंजी धरती, अतीव कोलाहल हुए।।१।१३।।

1 टिप्पणी:

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.