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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 016/017/018-01-016/017/018(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

 
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।१।१६।।
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।१।१७।।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।१।१८।।
अनंतविजयं = अनंतविजय नामक शंख को ( युधिष्ठिर के शंख का नाम ) ; कुन्तीपुत्र: = कुन्तीपुत्र ; युधिष्ठिर : = युधिष्ठिर ; नकुल: = नकुल ; ( सहदेवश्च = सहदेव: + च ) ; सहदेव: = सहदेव ; च = और ; सुघोष: = सुघोष नामक शंख ( नकुल के शंख का नाम ) ; मणिपुष्पक: = मणिपुष्पक नामक शंख ( सहदेव के शंख का नाम ) ;( काश्यश्च = काश्य: + च ) ; काश्य: = काशी के राजा ; च = और ; ( परमेष्वास: = परम + इषु + आस: ) ; परमेष्वास: = महान् धनुर्धर ; शिखण्डी = शिखण्डी ; महारथ: = महान् योद्धा ; धृष्टद्युम्न: = धृष्टद्युम्न ( राजा द्रुपद का पुत्र ) ; ( विराटश्च = विराट: + च ) ; विराट = राजा विराट ;
( सात्यकिश्चापराजितः = सात्यकि: + च + अपराजित: )सात्यकि: = सात्यकि ( भगवान श्रीकृष्ण के साथी ) ; अपराजित: = सदा विजयी , न हारने वाले ;
द्रुपद: = राजा द्रुपद ; ( द्रौपदेयाश्च = द्रौपदेया: + च ) ; द्रौपदेया: = द्रौपदी के पुत्र ; सर्वश: = सभी ; पृथ्वीपते = हे राजन् !;( सौभद्रश्च = सौभद्र: + च ) ; सौभद्र: = सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु ; महाबाहुः = महाबाहु, विशाल भुजाओं वाले ; ( शङ्खान्दध्मुः = शङ्खान् + दध्मु: ) ; शञ्खान् = शंखों ; दध्मु: = बजाया ;पृथक्पृथक् = अलग-अलग।
कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय नामक अपने शंख को बजाया। नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक अपने-अपने शंख को बजाया।।१।१६।।
महान् धनुर्धर काशिराज तथा महान् योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, राजा विराट और अजेय सात्यकि ने भी अपने-अपने शंख को बजाया।।११७।।
हे राजन्! राजा द्रुपद और द्रौपदी के सभी पुत्र तथा सुभद्रापुत्र महाबाहु अभिमन्यु ने अलग-अलग अपने-अपने शंख को जोर से बजाया।।१।१८।।
अनंतविजय की ध्वनि सुनाकर, युधिष्ठिर वर वीर उद्घोष किया।
सुघोष-वो-मणिपुष्पक के संग, नकुल सहदेव जयघोष किया।।१।१६।।
काशिराज पधारे परम धनुर्धर , शिखण्डी महारथी बलशाली।
सात्यकि अजेय धृष्टद्युम्न विराट ने, किए शंखध्वनि नादोंवाली।।१।१७।‌।
हे राजन्। राजा द्रुपद और द्रौपदी के पुत्र ने , अपने शंख बजाये हैं।
इस रणभूमि में महाबाहु सुभद्रा पुत्र ने, पृथक् ही शंख बजाये हैं।।१‌।१८।।

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