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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

ज्योतिष शास्त्र में योग

 ज्योतिष शास्त्र में योग 

शुभ मुहूर्त या योग को लेकर मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि शास्त्रों ज में बहुत कुछ कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य-चन्द्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहा जाता है। योग 27 प्रकार के होते हैं। ये योग हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया करते हैं।

1.विष्कुम्भ, 2.प्रीति, 3.आयुष्मान, 4.सौभाग्य, 5.शोभन, 6.अतिगण्ड, 7.सुकर्मा, 8.धृति, 9.शूल, 10.गण्ड, 11.वृद्धि, 12.ध्रुव, 13.व्याघात, 14.हर्षण, 15.वज्र, 16.सिद्धि, 17.व्यतिपात, 18.वरीयान, 19.परिध, 20.शिव, 21.सिद्ध, 22.साध्य, 23.शुभ, 24.शुक्ल, 25.ब्रह्म, 26.इन्द्र और 27.वैधृति।

इसके अलावा भी योग होते हैं- जैसे रवि-पुष्य योग, पुष्कर योग , द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग आदि।

पुष्कर योग :-

इस योग का निर्माण उस स्थिति में होता है जबकि सूर्य विशाखा नक्षत्र में होता है और चंद्रमा कृतिका नक्षत्र में होता है। सूर्य और चंद्र की यह अवस्था एक साथ होना अत्यंत दुर्लभ होने से इसे शुभ योगों में विशेष महत्व दिया गया है। यह योग सभी शुभ कार्यों के उत्तम मुहूर्त होता है।

त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग:-

वार, तिथि और नक्षत्र तीनों के संयोग से बनने वाले योग को दविपुष्कर योग कहते हैं। इसके अलावा यदि रविवार, मंगलवार या शनिवार में द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी तिथि के साथ पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ और पूर्वाभाद्रपद इन नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र आता है तो त्रिपुष्कर योग बनता है।

ज्योतिष शास्त्र में यह एक शुभ योग है । यदि कोई इस दिन कार्य करता है तो उसे यह काम तीन बार करना पड़ता है इसलिए इसका नाम त्रिपुष्कर योग रखा गया है।

त्रिपुष्कर योग में भगवान विष्णु अथवा अपने आराध्य देव की पूजा करना अथवा पुण्य-कार्य श्रेयस्कर है। इस योग में आप जो भी कार्य करते हैं, उसका तीन गुना फल प्राप्त होता है। गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा पीले फूल, हल्दी, अक्षत, पंचामृत, तुलसी के पत्ते आदि से करनी चाहिए।

इन योगों में किया गया पाप भी उतना ही गुना दोषपूर्ण हो जाता है।

हरि ॐ तत्सत्।

- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

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