आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।।१।२६।।(तत्रापश्यत्स्थितान् = तत्र+अपश्यत्+स्थितान् ) ; तत्र = वहां ; अपश्यत् = देखा ; स्थितान् = खड़े ; पार्थ: = अर्जुन ; पितॄनथ् = पितरों को(चाचा, ताऊ आदि) ; पितामहान् = पितामहों को ; आचार्यान् = गुरुओं को ; मातुलान् = मामाओं को ; भ्रातृन् = भाइयों को ; पुत्रान् = पुत्रों को ; पौत्रान् = पोतों को ; सखीं = मित्रों को ; तथा = और ; श्वशुरान् = ससुरों को ; ( सुहृदश्चैव = सुहृद:+च+एव ) ; सुहृद: = शुभचिंतकों को ; च = और ; एव = निश्चय ही ; सेनयो: = दोनों सेनाओं के ; उभयो: = दोनों पक्षों के ; अपि = भी ।
वहां पार्थ ने अनेक पितरों (चाचा, ताऊ आदि), पितामहों,गुरुओं, मामाओं, भाइयों,पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, श्वसुरों और शुभचिंतकों को युद्धभूमि में दोनों पक्षों की सेनाओं में युद्ध करने हेतु एकत्रित देखा।।१।२६।।
वहां पार्थ ने रण में देखा, पितर पितामह खड़े बड़े।
गुरु मामा भाई पुत्र सब, पौत्र मित्र भी भरे हुए।।
अनेक श्वसुर भी लड़ने आए, मरने को तैयार खड़े।
हितचिंतक नहीं हटने वाले,यम से भी जो नहीं डरे।।१।।२६।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'
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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024
श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 026-01-026(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)
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अध्ययन की सुगमता हेतु यह सरल और सहज क्रमिक रूप से उपलब्ध रहेगा। स्वरचित हिन्दी पद्यानुवाद मूल श्लोकों के भाव को याद रखने में पाठकों के लिए श्रेष्ठ-सेव्य है।
जवाब देंहटाएंहरि ॐ तत्सत्।
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