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रविवार, 25 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 037-01-037(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् ।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव ।।१।३७।।
( तस्मान्नार्हा =तस्मात्+न+आर्हा );तस्मात् = इससे; न अर्हा: = योग्य नहीं हैं; वयम् =हम ; हन्तुम् = मारने के लिये; (धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् = धार्तराष्ट्रान् +स्वबान्धवान् ); धार्तराष्ट्रान् =धृतराष्ट्र के पुत्रों को; स्वबान्धवान् = अपने बंधुओं; स्वजनम् = अपने कुटुम्बको; हि =क्योंकि; कथम् = कैसे; हत्वा = मारकर; सुखिन: = सुखी; स्याम =होंगे; माधव =हे माधव ।
अतएव हे माधव! अपने ही बन्धु धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं, क्योंकि अपने ही बन्धुओं को मारकर हम कैसे सुखी होंगे ? ।।१।३७।।
हे माधव!नहीं हम योग्य हैं, मारूं धार्तराष्ट्रों को यहाँ ।
स्वजनों को ही मारकर,हम होंगे सुखी माधव! कहाँ।।१।३७।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

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