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शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 031-01-031(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।।१।३१।।
निमित्तानि = लक्षणों को; च = और,भी; पश्यामि =देखता हूं; विपरीतानि = विपरीत; केशव = हे कृष्ण (हे केशी असुर को मारने वाले);न = नहीं; च = भी; और; (श्रेयोऽनुपश्यामि = श्रेय: + अनुपश्यामि); श्रेय: = कल्याण ; अनुपश्यामि = पहले से देख रहा हूंँ ; हत्वा = मारकर; स्वजनम् = अपने सगे-संबंधियों को; आहवे = युद्व में; ।
हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में अपने सगे-संबंधियों को मारकर कल्याण भी पहले से ही नहीं देख पा रहा हूँ।।१।३१।।
लक्षण विपरीत हैं दिखते, हे केशव! इसे पहचानता ।
स्वजनों को मारकर, नहीं कल्याण पूर्व ही जानता।।१।३१।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

2 टिप्‍पणियां:

  1. अध्ययन की सुगमता हेतु यह सरल और सहज क्रमिक रूप से उपलब्ध रहेगा। स्वरचित हिन्दी पद्यानुवाद मूल श्लोकों के भाव को याद रखने में पाठकों के लिए श्रेष्ठ-सेव्य है।

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