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रविवार, 18 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 020/021-01-020/021(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

अथव्यवस्थितान्दृष्ट्वा
धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।।१।२०।।
अर्जुन उवाच-
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।।१।२१।।
अथ = तत्पश्चात् ; व्यवस्थितान् = स्थित ; दृष्ट्वा = देखकर ; धार्तराष्ट्रान् = धृतराष्ट्र के पुत्रों को ; कपिध्वजः = जिसकी ध्वजा पर हनुमान सुशोभित हैं ; प्रवृत्ते = उद्धत, कटिबद्ध ; शस्त्रसंपाते = शस्त्र चलाने को ; (धनुरुद्यम्य = धनु: + उद्यम्य) ; धनु: = धनुष ; उद्यम्य = लेकर ; पाण्डव: = पाण्डु-पुत्र(अर्जुन) ; हृषीकेशं = अन्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण को ; तदा = उस समय ; ( वाक्यमिदमाह = वाक्यम् + इदम् + आह ) ; वाक्यम् = वचन ; इदम् = यह ; आह = कहा ; महीपते = हे राजन्! ; अर्जुन उवाच = अर्जुन ने कहा ; ( सेनयोरुभयोर्मध्ये = सेनयो: + उभयो: +मध्ये ) ; सेनयो: = सेनाओं के ; उभयो: = दोनों पक्षों के ; मध्ये = बीच में ; रथं = रथ को ; स्थापय = स्थित करें ; मे = मेरे; अच्युत = हे अच्युत!
तत्पश्चात् हनुमान चिह्न से सुसज्जित ध्वजा वाले रथ पर आरूढ़ होकर पाण्डु-पुत्र अर्जुन हाथों में धनुष लेकर वाण चलाने को उद्धत हुए। व्युह में धृतराष्ट्र के पुत्रों को युद्ध के लिए खड़े देखकर, हे राजन् !उन्होंने हृषीकेश भगवान श्रीकृष्ण से ये वचन कहे ।
अर्जुन ने कहा-
हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य स्थित करें।।१।२०-२१।।
कपिध्वज सुशोभित दिव्य रथ से,धार्तराष्ट्र को देख लिया।
वाण निकाले पार्थ हाथ में ,प्रत्यंचा कसकर खींच लिया।।
हे राजन् ! पार्थ अचंभित होकर,कौरव को देख हरि से बोले।
स्वजनों को उन्मत्त देख समर में, विस्मित होकर मुंह खोले।।१।२०।।
अर्जुन ने कहा-
हे अच्युत! हे हरिनाथ! सखा ! मेरे हृदय के हे स्वामी!
सैन्य-दलों के मध्य में रख लें, रथ को मेरे अन्तर्यामी ।।१।२१।‌।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'




2 टिप्‍पणियां:

  1. अध्ययन की सुगमता हेतु यह सरल और सहज क्रमिक रूप से उपलब्ध रहेगा। स्वरचित हिन्दी पद्यानुवाद मूल श्लोकों के भाव को याद रखने में पाठकों के लिए श्रेष्ठ-सेव्य है।

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