यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे।।१।२२।।
( यावदेतान्निरीक्षेऽहं = यावत् + एतान् + निरीक्षे + अहम् ) ; यावत् = जब तक ; एतान् =इन्हें ; निरीक्षे = देख लूं ; = मैं ; ( योद्धुकामानवस्थितान् = योद्धुकामान् + अवस्थितान् ) ; योद्धुकामान् = युद्ध की इच्छा रखने वाले को : अवस्थितान् = युद्ध भूमि में एकत्रित ;
( कैर्मया = कै: + मया ) ; कै: = किन-किन लोगों से ; मया = मेरे द्वारा ; सह = साथ
( योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे = योद्धव्यम् + अस्मिन् + रण + समुद्यमे ) ; योद्धव्यम् = युद्ध किया जाना ; अस्मिन् = इस ; रण = संग्राम, युद्ध ; समुद्यमे = प्रयास में।
जब तक मैं युद्ध-भूमि में एकत्रित युद्ध की इच्छा रखने वाले इन लोगों को देख लूं कि मेरे द्वारा किन-किन लोगों के साथ संग्राम में युद्ध किया जाना है।।१।२२।।
देख लूं मैं युद्धकामी, जिससे लड़ना है मुझे।
समर-भूमि में सामना, किससे करना है मुझे ।।१।२२।।
हरि ॐ तत्सत्।
( यावदेतान्निरीक्षेऽहं = यावत् + एतान् + निरीक्षे + अहम् ) ; यावत् = जब तक ; एतान् =इन्हें ; निरीक्षे = देख लूं ; = मैं ; ( योद्धुकामानवस्थितान् = योद्धुकामान् + अवस्थितान् ) ; योद्धुकामान् = युद्ध की इच्छा रखने वाले को : अवस्थितान् = युद्ध भूमि में एकत्रित ;
( कैर्मया = कै: + मया ) ; कै: = किन-किन लोगों से ; मया = मेरे द्वारा ; सह = साथ
( योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे = योद्धव्यम् + अस्मिन् + रण + समुद्यमे ) ; योद्धव्यम् = युद्ध किया जाना ; अस्मिन् = इस ; रण = संग्राम, युद्ध ; समुद्यमे = प्रयास में।
जब तक मैं युद्ध-भूमि में एकत्रित युद्ध की इच्छा रखने वाले इन लोगों को देख लूं कि मेरे द्वारा किन-किन लोगों के साथ संग्राम में युद्ध किया जाना है।।१।२२।।
देख लूं मैं युद्धकामी, जिससे लड़ना है मुझे।
समर-भूमि में सामना, किससे करना है मुझे ।।१।२२।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'
हरि ॐ तत्सत्।
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