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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 028/029-01-028/029(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

अर्जुन उवाच -
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्णं युयुत्सुं समुपस्थितम् ।।१।२८।। 
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति । 
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।।१।२९।।
कृष्ण =हे कृष्ण; इमम् =इस; युयुत्सुम् = युद्व की इच्छा वाले; समुपस्थितम् =खड़े हुए; स्वजनम् = स्वजन समुदाय को; द्रष्टा= देखकर; मम = मेरे; गात्राणि =अंग; सीदन्ति = शिथिल हुए जाते हैं; च = और; मुखम् =मुख (भी); परिशुष्यति = सूखा जाता है; च = और; मे = मेरे; शरीरे =शरीर में; वेपथु: =कम्प; च = तथा; रोमहर्ष: =रोमांच; जायते = होता है।अर्जुन बोले- हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन समुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्पन एवं रोमांच हो रहा है ।।१।।२८ -२९।।
रणोत्सुक देख इन बांधवों को ,अंग शिथिल से, कृष्ण मेरे हो रहे हैं। 
मुख सूख रहे हैं, तन में मेरे रोमांच कंपन ,अजब कैसे हो रहे हैं।।१।।२८-२९।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

2 टिप्‍पणियां:

  1. अध्ययन की सुगमता हेतु यह सरल और सहज क्रमिक रूप से उपलब्ध रहेगा। स्वरचित हिन्दी पद्यानुवाद मूल श्लोकों के भाव को याद रखने में पाठकों के लिए श्रेष्ठ-सेव्य है।

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