Home, All Blogs, My Posts List, All label5

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 047-01-047(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

संजय उवाच – 
एवमुक्त्वार्जुन: संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् । 
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: ।।१।४७।।
एवम् = इस प्रकार;उक्त्वा =कहकर; अर्जुन: =अर्जुन; (एवमुक्त्वार्जुन: =एवम्+उक्त्वा+अर्जुन;संख्ये= रणभूमि में; (रथोपस्थ=रथ+उपस्थ);रथ = रथ के; उपस्थ=पिछले भाग में (आसन पर);उपाविशत् = बैठ गया;विसृज्य = त्यागकर; सशरम् = बाणसहित; चापम् =धनुष को; शोकसंविग्नमानस: = शोक से उद्विग्न मन वाला।
संजय -बोले 
रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाला अर्जुन इस प्रकार कहकर वाण सहित धनुष को त्यागकर रथ के आसन पर बैठ गया ।।१।४७।।
संजय बोले – 
रणभूमि में उद्विग्न मन से अर्जुन ने धनु शर त्याग दिए। 
रथ आसन पर पीछे जा बैठे, रण लड़ने से वितराग किए।।१।४७।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.