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शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक पाठ 033/034/035-01-033/034/035(हिन्दी पद्यानुवाद सहित)

येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च ।
ते इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ।।१।३३।।
आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: ।
मातुला: श्वशुरा: पौत्रा श्याला: सम्बंधिनस्तथा ।।१।३४।।
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते।।१।३५।।
(येषामर्थे = येषाम्+अर्थे); येषाम् = जिनके; अर्थे = लिये; काॾ.क्षितम् = इच्छित हैं; न:=हमारा;राज्यम्=राज्य; भोगा: = भोग; सुखानि = सुख; च = और; ते = वे (ही); इमे = यह सब; अवस्थिता: = खड़े हैं; युद्धे = युद्ध में;(प्राणांस्त्यक्त्वा =प्राणान् +त्यक्त्वा); प्राणान् = जीवन (की आशा) को; त्यक्त्वा =त्यागकर; धनानि = धन; आचार्या: = गुरुजन; पितर: = पितृगण; पुत्रा: = पुत्रगण; (पुत्रास्तथैव = पुत्रा:+तथा+एव); पुत्रा: = पुत्र; तथा = वैसे; एव = निश्चय ही; च = भी; पितामहा: = दादा; मातुला: = मामा; श्वशुरा: = ससुर; पौत्रा: = पोते;श्याला:=साले;(सम्बंधिनस्तथा = सम्बंधिन:+तथा); सम्बन्धिन: = सम्बन्धी लोग; तथा = और; एतान् =इन सबको; न: = हमारा (एतान्न = एतान्+न); हन्तुम् =मारना; इच्छामि = चाहता हूँ;(हन्तुमिच्छामि = हन्तुम्+ इच्छामि): (घ्नतोपि=घ्नत:+अपि); घ्नत:; = मारे जाने पर; अपि = भी; मधुसूदन = मधु राक्षस को मारनेवाले श्री कृष्ण!, त्रैलोक्यराज्यस्य = तीनों लोकों के राज्य के; हेतो: = के लिए; महीकृते = पृथिवी के लिये ; नु किम् = कहना ही क्या है।
हम जिनके लिये राज्य, भोग और सुख चाहते हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं ।।१‌।३३।।।
गुरुजन, पितृगण, पुत्रगण,और उसी प्रकार पितामह, मामा लोग, ससुर, पौत्र, सालें तथा अन्य भी सम्बन्धी लोग हैं ।।१।३४।
हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मै इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।।१।३५।।
जिनके लिए मैं चाहता राज्य सुख और भोग को।
प्राण धन की आस छोड़ें, रण में खड़े वे योग को।।१।३३।।
पिता पुत्र और गुरु पितामह रण-आंगन में खड़े।
मामा ससुर और पौत्र सालें अन्य सम्बन्धी बड़े।।१।३४।।
हे नाथ! त्रिलोक के राज्य हित न मारता, मारें मुझे।
मही सुख अति तुच्छ है, संघारना क्यों बिन बुझे।।१।३५।।
हरि ॐ तत्सत्।
- श्री तारकेश्वर झा 'आचार्य'

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